“उत्तर प्रदेश के हस्तशिल्प उद्योग में 2025 में क्रांतिकारी बदलाव! महाकुंभ और ODOP जैसे मंचों से कारीगरों को मिल रहे नए बाजार और रोजगार। 35 करोड़ का कारोबार और वैश्विक मांग बढ़ाने के लिए सरकार की योजनाएं। आधुनिक डिजाइन और क्लस्टर मॉडल से यूपी के हस्तशिल्प की नई पहचान।”
उत्तर प्रदेश में हस्तशिल्प: कारीगरों के लिए नए अवसर
उत्तर प्रदेश, जिसे भारत का हृदयस्थल कहा जाता है, अपने समृद्ध हस्तशिल्प के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। 2025 में, खासकर महाकुंभ जैसे आयोजनों और सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ (ODOP) पहल ने कारीगरों के लिए नए बाजार और रोजगार के अवसर खोल दिए हैं। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में हस्तशिल्प उद्योग को 45 दिनों में लगभग 35 करोड़ रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है, जो 2019 के कुंभ में हुए 4.3 करोड़ रुपये के कारोबार से कई गुना अधिक है।
प्रयागराज में 6,000 वर्ग मीटर में फैली ODOP प्रदर्शनी में कुशीनगर के कालीन, फिरोजाबाद के कांच के खिलौने, वाराणसी के लकड़ी के खिलौने और जरी-जरदोजी जैसे उत्पादों की मांग बढ़ रही है। संयुक्त उद्योग आयुक्त शरद टंडन के अनुसार, यह वृद्धि छोटे उद्यमियों और कारीगरों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी। Flipkart जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी इस मेले में मुफ्त स्टॉल प्रदान कर स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा दे रहे हैं।
वैश्विक मंच पर यूपी के हस्तशिल्प
उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार के हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय (Development Commissioner for Handicrafts) ने कारीगरों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने के लिए कई कदम उठाए हैं। 58वें IHGF दिल्ली फेयर 2024 में, यूपी के ODOP उत्पादों को 103 से अधिक देशों के खरीदारों ने सराहा। इस मेले में 3,000 से अधिक प्रदर्शकों ने हाउसवेयर, फर्नीचर, गिफ्ट्स, और लेदर बैग्स जैसे उत्पाद प्रदर्शित किए। उत्तर प्रदेश के वित्त और संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इस आयोजन को कारीगरों और निर्यातकों के लिए एक सुनहरा अवसर बताया।
आधुनिक प्रशिक्षण और क्लस्टर मॉडल
कारीगरों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए सरकार आधुनिक डिजाइन, गुणवत्ता नियंत्रण और अंतरराष्ट्रीय बाजार मानकों पर प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों से प्रेरणा लेते हुए, यूपी में भी छोटे और बिखरे हुए हस्तशिल्प समूहों को क्लस्टर मॉडल में लाने की योजना है। इससे उत्पादन बढ़ेगा, परिवहन लागत कम होगी और मार्केटिंग में सुधार होगा।
मुरादाबाद के पीतल उद्योग, वाराणसी की बनारसी साड़ियां, और लखनऊ की चिकनकारी जैसे हस्तशिल्प पहले से ही विश्व बाजार में अपनी जगह बना चुके हैं। मुरादाबाद, जिसे ‘पीतल नगरी’ कहा जाता है, अपने टिकाऊ और खूबसूरत धातु उत्पादों के लिए जाना जाता है। इनका निर्यात मध्य पूर्व और यूरोप जैसे क्षेत्रों में बढ़ रहा है।
चुनौतियां और समाधान
हालांकि, कोविड-19 महामारी और पहले की आर्थिक नीतियों जैसे नोटबंदी और जीएसटी ने कारीगरों को प्रभावित किया था। डस्तकर जैसे संगठनों ने इस दौरान कारीगरों के लिए सहायता कोष शुरू किए, जिससे उन्हें कच्चा माल, उपकरण और चिकित्सा सहायता मिली। अब, सरकार की डिजिटल मार्केटिंग पहल, जैसे ऑनलाइन पोर्टल और मेले, कारीगरों को सीधे ग्राहकों से जोड़ रहे हैं।
आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व
उत्तर प्रदेश के हस्तशिल्प न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत को भी संजोते हैं। भदोही, जिसे ‘कालीन नगरी’ कहा जाता है, 16वीं सदी से फारसी पैटर्न वाले रेशमी कालीन बना रहा है। इसी तरह, फिरोजाबाद की कांच की चूड़ियां और वाराणसी के कांच के मोती वैश्विक मांग को पूरा कर रहे हैं।
आने वाले चार-पांच वर्षों में हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र में 1,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है, जो लाखों कारीगरों को रोजगार देगा। सरकार की योजनाएं, जैसे हस्तशिल्प सेवा केंद्र और डिजिटल मार्केटिंग, कारीगरों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेख हाल के समाचारों, सरकारी योजनाओं और वेब पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है। डेटा और अनुमान आधिकारिक स्रोतों से लिए गए हैं, लेकिन वास्तविक परिणाम भिन्न हो सकते हैं। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे नवीनतम जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट्स और समाचार स्रोतों की जांच करें।